निर्वाचन आयोग द्वारा देश में होने वाले सभी उपचुनावों को कोविड के बढ़ते मामलों के द्रटिगत फिलहाल उपचुनाव न कराने के निर्णय से सत्तारूढ पार्टियों को निराशा, तो विपक्ष को राहत मिली है,सत्ता पक्ष इस समय चुनाव के पक्ष में था,क्योंकि उपचुनाव में सत्तारूढ पार्टी को लाभ होता है,विपक्ष यह आरोप लगा सकता है, कि सत्तारूढ पार्टी चुनाव से डर गई।
भारत निर्वाचन आयोग के सभी प्रदेशों में,कोविड के बढ़ते मामलों को ध्यान में रखते हुए उपचुनाव स्थगित करने के निर्णय से राजनैतिक पार्टायों में खुशी का अहसान हुआ है,सत्ता पक्ष के लिए एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति तो विपक्ष के लिए हार का डर था,कयोंकि उपचुनाव में अक्सर सत्तारूढ पार्टी ही जीत दर्ज करती है।दोनों ओर खुशी की खबर है उपचुनाव का टलना।
हिमाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के लिए सुखद अनुभव इस बात का है कि सभी 4 उपचुनाव में पार्टी के कई कार्यकर्ता टिकट के लिए जोरअजमाइस में लगे थे,पार्टी के लिए असहज स्थिति यह थी कि आम चुनाव से पहले किस को खुश करें किसे नाराज करें।
विधान सभा उपचुनाव की बात करें तो फतेहपुर में पार्टी के 3 उम्मीदवार ताल ठोक रहे थे जो बराबरी की टक्कर देने वाले थे।इसी प्रकार अर्की विधान सभा सीट से भी दो बराबर बजन वाले उम्मीदवार अपने अपने पक्ष में प्रचार में डट गये थे ,उसी प्रकार जुब्बल कोटखाई में भी कई उम्मीदवार अपने अपने प्रभाव के माध्यम व रसूक के दम पर मैदान में उतरने के लिए आतुर थे।पार्टी के लिए उबलते दूध को पीने वाली स्थिति थी कि दूध को निगलें या उगलें।अच्छा हुआ चुनाव टल गए नहीं तो कुछ लोगों ने पार्टी के लिए मुसीबत पैदा कर दी होती।
कांग्रेस पार्टी भी भीतर ही भीतर खुश है,उसकी हालत तो यह है कि चित भी मेरी पट भी मेरी,कारण कांग्रेस की हालात बगैर दुल्हे की बारात जैसी थी,कोई नेता ऐसा नहीं था जो किसी एक पर सहमति बन सके।उपचुनाव में सत्तारूढ पार्टी की ही बल्ले बल्ले होती है इसलिए तुरंत आने वाला खतरा टल गया। कांग्रेस मीडिया में यह जरूर प्रचार कर सकती है कि सरकार चुनाव कराने से डर गई। इस प्रकार खतरा भी टल गया और दुष्प्रचार का मौका भी मिल गया।
मुख्य मंत्री श्री जयराम ठाकुर को चिंता मुक्त रह कर आगामी योजना बनाने का अच्छा अवसर मिल गया।यदि 30 नवंबर तक कोविड की स्थिति यथावत रही, तो फिर विधान सभा के उपचुनाव नहीं होंगे कयोंकि जिस प्रदेश में भी उपचुनाव होने हैं यदि आमचुनाव का एक वर्ष से कम समय रहता है तो वहां चुनाव नहीं होते।इसलिए चुनाव रणनीति बनाने के लिए पर्याप्त समय भी मिल जायेगा और अभी से उम्मीदवारके चयन के लिएभी खुल्ला समय मिल जायेग।इस प्रकार उपचुनाव टलना सत्तारूढ व विपक्ष के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है।
गणेश दत्त।
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