भारत के मुख्य न्यायाधीश चन्द्र चूढ़ महोदय ने न्यायाधीशों के सेवानिवृत्त होने के साथ ही किसी राजनीतिक पार्टी में शामिल होने को लेकर टिप्पणी की है,निश्चित ही सोचनीय विषय है,एक समय जुडिशल सेवा से जुड़े लोग समाज के साथ भी घुलते मिलते नहीं थे लेकिन आज न्यायाधीश हर सामाजिक कार्यक्रमों में बड़ी शान से शामिल होते है,कुछ लोगों के सुविधानुसार निर्णय देते हैं,सुविधानुसार रात रात को कोर्ट खोल देते हैं और संदिग्ध केसों की सुनवाई करते हैं ,और तत्काल निर्णय देकर किसी पार्टी को राहत प्रदान करते हैं,स्वभाविक है कि जिस पार्टी को राहत दी गई होगी वह पार्टी संबंधित न्यायाधीश को अपनी पार्टी में आने का निमंत्रण देते होंगे ,और निमंत्रण स्वीकार भी किये जाते हैं यह मानव की प्रबृति है उसे यह सब मंजूर है ,तो किसी पार्टी को ज्वाइन करने में क्या आपत्ति है,यदि न्यायाधीशों के कार्यकाल व सेवानिवृत्त के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल होने या न होने पर कोई संवैधानिक प्रोटोकॉल बने ,तो तत्काल लाभ लेने वाली स्थिति समाप्त हो जायेगी और जज साहब किसी राजनीतिक दल में नहीं जा पायेंगे.
भारत के मुख्य न्यायाधीश महोदय ने एक व्यवहारिक प्रश्न खड़ा किया है कि कोई न्यायाधीश सेवानिवृति के तुरंत बाद कोई पार्टी ज्वाइन करे तो लोग क्या सोचेंगे?कुछ नहीं सोचैगें .जब तक सेवाकाल व सेवानिवृत्त के बाद तक न्यायाधीशों के क्रिया-कलपों पर , संवैधानिक प्रोटोकॉल नहीं बन जाता तब तक कुछ कहना या सोचना चलता रहेगा.यह सब न्यायाधीश के अपने कार्यकाल के व्यवहार व कार्य करने के ढंग पर निर्भर करता है कि न्यायाधीश की छवि जनता के दिमाग पर कैसी है.उसी अनुसार तत्काल पार्टी ज्वाइन करने पर जनता की भीअपनी सोच बनती है.
गणेश दत्त.
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