न्याय पालिका और विधाई के बीच चल रहा विवाद समाप्त होना चाहिए, दोनों पक्षों को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए तभी स्वस्थ्य लोकतंत्र की कल्पना की जा सकती है,एक बात तो निश्चित है कि कोलिजिम सिस्टम से देश मे जजों के व्यवहार में बहुत बदलाव आया है और विवाद इतना बढ़ गया कि नौबत तू बड़ा नहीं मैं बड़ा तक पहुंच गई है,किसी समय जजों को भगवान का रूप माना जाता है लेकिन अब जब जजों के घरों में नोटों की बोरियां देखी जा रही हैं कुछ अधजले नोट भी देखे जा रहे हैं और उस पर कोई FIR तक नहीं होती तो जनता का विश्वास टूटना लाजमी है,अब मांग उठ रही है कि कौलिजियम सिस्टम से नायाधीशों नियुक्ति नहीं होनी चाहिए इससे विधाई और न्यायपालिका में विवाद खड़े हो रहे हैं कौलिजियम के माध्यम से जो जज आ रहे हैं उन में से बहुत सारे पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं इसलिए जजों की नियुक्ति के लिए एक आयोग का गठन होना चाहिए जिससे जनता का विश्वास दुबारा न्यायालयों पर बन सके.
देश चल रहे विधाई और न्यायपालिका के बीच चल रहा विवाद समाप्त होना चाहिए, न्यायपालिका को राष्ट्रपति के पद की गरिमा को बनाये रखना चाहिए, कुछ लोग राष्ट्रपति के पद को रबर स्टैंप कह कर अपनी खींच निकालते हैं जबकि ऐसा नहीं है,किसी समय चुनाव आयोग को भी रबर स्टैंप ही कहा जाता था मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेशन ने बता दिया था कि चुनाव आयोग रबर स्लेस्टैम्प नहीं है.चुनाव आयोग ने अपने अधिकारों का अहसास करा दिया है.
स्वच्छ परम्परा और शशक्त लोकतंत्र के लिए विधाई और न्यायपालिका में समन्वय और एक दूसरे का सम्मान बहुत आवश्यक है.
गणेश दत्त.
Please Share This News By Pressing Whatsapp Button