बाढ़ भूस्खलन सैलाब इसे पहले प्रकृतिक प्रकोप कहा जाता था,लेकिन अब वैज्ञानिक इसे मानव-निर्मित त्रासदी बता रहे है,इस में कोई दो राय नहीं है कि भौतिकवाद की भूख में हम प्रकृति का दोहन करने की जगह प्रकृति का शोषण कर रहे हैं,पहाड़ी क्षेत्र एक अलग प्रकार की पहचान रखते हैं,जमीन ऊंची नीची ढलान दार होती है उसे छेड़ने की हालत में आपदा को निमंत्रण देने के समान होता है पहले जब सड़क बनानी हो या और कोई विकास का कार्य होता था तो मैनुअल ढंग से कार्य किया जाता था लेकिन अब हैवी मशीनरी का प्रयोग कर विकास के कार्य होते है उससे धरती हिलती है और एक कंपन जैसी स्थिति पैदा हो जाती है और भारी वर्षात के समय अपना स्थान छोड़ चुकी धरती की नींव कमज़ोर पड़ जाती है और पानी बाहर की जगह अंदर की ओर प्रवेश कर जाता है उससे इरोजन हो जाता है और उन इरोजन से सैलाब भूमिकटाव हो जाता है और वह कभी कभी भयंकर रूप धारण कर लेता है फलस्वरूप आपदा आ जाती है.
हिमाचल सहित पहाड़ी प्रदेशों में हर वर्ष वर्षात के दिनों भारी भूस्खलन भूमि कटाव बाढ एक आम बात हो गई है जिससे अरबों रुपए की हानि हो रही है उसकी मुरम्मत पुनर्निर्माण में सारा बजट खर्च हो जाता है वैज्ञानिक पहाड़ी प्रदेशों में हो रहे भूमि काटव व भूस्खलन को मानव निर्मित बता रहे हैं,इस में कोई दोस्त नहीं हैं.आधुनिक युग में हमें सभी सुविधायें भी चाहिए, चौड़ी सड़के भी चाहिए और शीघ्र चाहिए, उसी का फल है कि वर्षात में मूमि कटाव त्रासदी का रूप ले रहा है जिससे मानव-जीवन की क्षति भी हो रही है और भारत नुकसान भी हो रहा है.
गणेश दत्त.
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