विरोधी सरकारें गवर्नर्स को फुटबाल कब तक बनाती रहेंगी,ममता बैनर्जी, उद्धव ठाकरे ने,और हिमाचल की कांग्रेस ने राज्यपालों की गरिमा को धूल में मिला दिया।
हमारे संविधान में राज्य पाल को प्रदेश का सबसे उच्च पद व सम्मान का पद माना गया है।यह पद संविधान की रक्षा देश की एकता अखंडता की रक्षा की शपथ दिलाता है,यही नहीं न्यायाधीश के प्रतिष्ठित पद को भी संविधान की रक्षा एकता अखंडता की कसम खिलाता है।गत कुछ वर्षों से राज्य पाल के पद को फुटबाल की तरह किक मारने अपमानित करने तथा उस पर भष्टाचार तक के आरोप लगाना आम बात हो गई है।
ताजा घटनाक्रम पश्चिमी बंगाल के गवर्नर श्री सतीश धनकड़ व मुख्य मंत्री ममता बैनर्जी के बीच चल रहे विवाद के बाद गवर्नर के पद को ऐसे देखा जा रहा है जैसे वह गवर्नर न होकर विपक्षी पार्टी का नेता है।ममता बनर्जी न जगदीश धनकड़ पर भष्टाचार का आरोप लगा कर उन्हैं पद से इस्तीफा देने की माँग कर डाली है।जवाब में श्री धनकड़ ने भी ममता बैनर्जी पर अपने लोगों को कोरोना काल में रेवड़ियां बांटने का आरोप लगा दिया।यह बड़े आश्चर्य का विषय है कि राज्यपाल आरोप लगा रहे हैं कारवाई नहीं कर रहे।यह इस बात को दर्शाता है कि आपकी बात में दम नहीं है अन्यथा ऐक्शन होना आवश्यक था।
महाराष्ट्र के राज्य पाल श्री भगत सिंह कोशियारी पर वहाः की उद्धव ठाकरे की सरकार ने हेलीकॉप्टर देने से मना कर दिया और उन्हें जलील करते रहे।
हिमाचल की कांग्रेस पार्टी ने समय समय पर राज्यपालों को अपमानित किया उसका ताजा उदाहरण हिमाचल के राज्यपाल जी का सदन मे जाने से रास्ता रोकना उनकी गाड़ी को रोकना कांग्रेस के विधायकों द्वारा किया जाना,यही नहीं स्व’ विष्णुकांत शाश्त्री जी को अपमानित करना।आदि बहुत से उदाहरण राज्यपालों के गरिमामय पदों को जलील करने का सिलसिला चल पड़ा है।क्या संविधान के प्रहरी को इसी तरह अपमानित होना पड़ेगा या उस पद की रक्षा होगी यह अब चर्चा का विषय बन गया है।ऐसा कयों हो रहा है क्योंकि राजनीतिक श्रेत्र के खिलाड़ियों को ऐसे में मजा आता है या उनकी आत्मा पर लगातार हो रहे प्रहार के लिए कोई कवच बनेगा।
गणेश दत्त।
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