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जीत के कई बाप हार अनाथ,भारतीय जनता पार्टी को आगे की राह दिखाई जनता ने,सुधर जाओ,जितना मुंह उतनी बातें ,क्या कांग्रेस के प्रत्याशियों को जिताकर महंगाई खत्म हो जायेगी,बेरोजगारी खत्म हो जायेगी,क्या रातों रात गैस पेट्रोल डीजल के दाम कम हो जायेंगे या कांग्रेस स्वर्ण आयोग बना देगी नहीं ?उनके पास जादू की छड़ी नहीं आई, एकसाथ गुस्सा निकल गया लोगों को तसल्ली हो गई कि भाजपा को हमने सबक सिखा दिया,जो लोग जीते हैं उनकी पहुंच न दिल्ली में है और न ही शिमला में,2 महिने बाद समझ आ जायेगी,सत्ता के मद में बेहोश मंत्री,विधायक जरूर अपना आंकलन खुद करें। अफसरशाही की हैकड़ी तोड़ने की आवश्यकता है,सब अपने आप ठीक हो जायेगा।

हिमाचल के उपचुनाव में भाजपा की सफाई और कांग्रेस को संजीवनी जरूर मिल गई है लेकिन यह क्षणिक है।हमने 1984 में तत्कालीन प्रधान मंत्री स्व,इंदिरा गांधी की हत्या के बाद मध्यावधि चुनाव के परिणाम भी देखे हैं जब कांग्रेस को 414 सीटें मिली थी,उसके बाद जितने भी उपचुनाव हुए थे कांग्रेस सभी में हारी थी,लोगों ने हत्या का बदला सीटों में दिया था और बाद में कांग्रेस के कुशासन का बदला कांग्रेस को सबक सिखा कर दिया था,1984 में 414 लोक सभा सीट लेने वाली कांग्रेस आजतक कभी दुबारा बहुमत में नहीं आयी है।हमारे लोग संवेदनशील भी हैं और प्रतिक्रिवादी भी हैं इसलिए हिमाचल के उपचुनाव को एक संदेश समझ कर आगे की रणनीति बनाने चाहिए। इन चुनावों में अपना गुस्सा प्रकट किया गया है।अब भारतीय जनता पार्टी को अपने घर को व्यवस्थित कर आगे की रणनीति बनाने चाहिए। मंत्री ,विधायकों को जमीन पकड़ने चाहिए।

अफसरों की सर सर और झंडी की फर फर में मदहोश नहीं होना चाहिए। नये पुराने कार्यकर्ताओं का ध्यान जरूर रखना चाहिए।

गणेश दत्त।

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