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वामपंथियों का कांग्रेस को बिन मांगे समर्थन देना कोई नयी बात नहीं है,सिकुड़ते जनाधार और हो रही जमानत जब्त से परेशान कौमनिस्टों को नया घर तो ढूंढना ही था,एक समय कांग्रेस और वामपंथियों की मिली जुली सरकार केन्द्र में थी उस समय वामपंथियों ने सरकार का पूरा लाभ उठाया और कई संस्थानों में अपने व्यक्तियों की नियुक्तियां भी करवाई, वामपंथियों को एक वैचारिक पार्टी के रूप में जाना जाता है,कांग्रेस के साथ गलबंयां के बजाय उनका कैडर अपनी अलग पहचान बनाये रखने का पक्षधर रहा है,और हार्डकोर के वैचारिक लोग सरकार के आंनंद के बजाय अपनी अलग पहचान बनाए रखने के लिए अपने बरिष्ठ नेतृत्व को आगाह करते रहे हैं ,अंतोगत्वा वामपंथियों को सरकार से अलग होना पड़ा था.हिमाचल में वामपंथियों का कांग्रेस को समर्थन देना उनकी मजबूरी है डूबते को तिनके का सहारा. चाहिए पिछले कुछ समय से वामपंथियों की चुनावी राजनीति में जमानतें जब्त होती आ रही थी इसीलिए उनका कांग्रेस को समर्थन देना समय की जरूरत थी.

हिमाचल प्रदेश में वामपंथी दलों का कांग्रेस को समर्थन देना कोई नयी बात नहीं है,वैचारिक द्रष्टि से वामपंथी कांग्रेस को अपना नजदीकी मानते हैं,वैचारिक द्रष्टि से उनकी विचारधारा भारतीय जनता पार्टी से मेल नहीं खाती है.इसलिए उनको राजनीतिक द्रष्टि से जिन्दा रखने के लिए किसी न किसी दल से जुडना आवश्यक था.

हिमाचल प्रदेश में वामपंथ का आधार शिमला नगर, ठियोग रामपुर कुल्लू किन्नौर में और चम्बा कुछ प्रोजेक्ट एरिया में रहा है लेकिन पिछले चुनावों में वामपंथ की जमानत जब्त होती आयी हैं फलस्वरूप उनके साथ जुडे कार्यकर्ताओं  को कोई फोरम तो चाहिए था जहां से वे सरकार के खिलाफ मुर्दाबाद के नारे लगा सकें,वामपंथी कार्यकर्ताओं को आने वाले समय में कठिनाई जरूर आयेगी एक तरफ वे कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं और दूसरी तरफ सरकार मुर्दाबाद के नारे लगायेंगे यह एक विचित्र स्थिति होगी.लेकिन भाजपा को एक बात का अवश्य ध्यान देने की आवश्यकता होगी,जहां हारजीत का अंतर कम रहने वाला है वहां वामपंथियों का वोट निर्णयक हो सकता है.

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